जनाब के. के. सिंह "मयंक" अकबराबादी की पैदाइश सन् 1944 ई. में उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा में हुई । उन्होंने अपनी तालीम आगरा (अकबराबाद) में हासिल की । सन् 1969 ई. में उन्होंने रेलवे विभाग में बतौर अफसर अपनी नौकरी की शुरुआत की। बृज भूमि से ताल्लुक होने की वजह से बचपन ही से उन्हें कविताएं, गीत, वगैरह लिखने का शौक रहा। आला अफसर होने की वजह से हिंदुस्तान के मुख्तलिफ सूबों और शहरों में उन्हें रहने और वहाँ की जिंदगी को क़रीब से देखने क मौका हासिल हुआ। इस दौरान सन् 1980 ई. में रतलाम पहुँचने के बाद उर्दू शायरी से लगाव पैदा हुआ और तब से आज तक अदब की खिदमत कर रहे हैं।
कि कच्चे स्नेह के धागों का ,इक त्योहार है राखी।
समाया भाई बहना का,इसमें प्यार है राखी।।
बहन ससुराल से जब मायके आती है सावन में।
जो बहना भाई को देती मधुर उपहार है राखी।।
कि ज्यों कर्णावती ने राखायाँ भेजी हुमायूँ को।
ढ़हाती धर्म ईमाँ की हरिक दीवार है राखी।।
बहन जब दूर होती है तो राखी भेज देती है।
यही भाई बहन के प्यार का आधार है राखी ।।
ये कच्चे प्यार के धागे बड़े मजबूत होते हैं।
"मयंक" इनमें झलकता नेह का संसार है राखी।।
शायर: के. के. सिंह "म
यंक"
मुझ पर भी करम करना ज़रा कृष्ण कन्हैया।
सागर मेंहूँ मैं और भवँर में मेरी नैया।।
जीवन के अन्धेरे में मेरे कर दे उजाला।
दे दरस हमेंभी ओ कभी नन्द के लाला।।
बंसी की मधुर तान बजा बंसी बजैया।
मुझ पर भी करम करना ज़रा कृष्ण कन्हैया।।
सखियों के संग तुमने महा रास रचाया।
विपदा में पड़ी द्रौपदी का चीर बढ़ाया।।
ऐ मोर मुकुट वारे ओ गैयों के चरैया।
मुझ पर भी करम करना ज़रा कृष्ण कन्हैया।।
अवतार लिया आपने मामा की जेल में।
मारा था कंस आपने बस खेल खेल में।।
सोलह कला प्रवीन ओ काली के नथैया।
मुझ पर भी करम करना कृष्ण कन्हैया।।
गीता में दिया था जो वचन आके निभा दे।
भटकी हुई दुनियाँ को सही राय दिखा दे।।
सुन टेर मुझ "मयंक" की बलराम के भैया।
मुझ पर भी करम करना ज़रा कृष्ण कन्हैया।।
गीतकार:
के.के.सिंह "मयंक"